IThe Last Turn Of The Journey (सफ़र का आख़िरी मोड़)
घड़ी मैं रात के दो बज़ रहे थे। आसमान में बादल छाए हुए थे और सड़क सुनसान थी। हाईवे पर दूर-दूर तक कोई गाड़ी नजर नहीं रही थी। केवल रमेश का पुराना ट्रक धीरे-धीरे चलता हुआ सुनसान सड़क पर दिखाए दे रहा था।ट्रक की हेडलाइट्स आगे के अंधेरे को काट रही थीं, लेकिन हर तरफ घना सन्नाटा फाला वह था। सड़क के किनारे सूखे पेड़ खड़े थे, जिनकी शाखाएँ हवा के झोंकों से अजीब आवाज़ें निकाल रही थीं।रमेश की आँखें नींद से भारी हो रही थीं। उसने खिड़की खोल दी ताकि ठंडी हवा उसे जागृत रख सके। और रेडियो
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पर धीमी आवाज़ में एक पुराना गीत बज रहा था, लेकिन वह गीत भी रात के सन्नाटे को और गहरा कर रहा था।अचानक उसकी नजर सड़क के बीच में पड़ी। उसने देखा कि सामने एक औरत खड़ी है । जिसने सफेद साड़ी पेन रखकी है खुले बिखरे बाल है और चेहरा ढका हुआ है ।रमेश ने घबराकर जोर से ब्रेक लगाया। ट्रक घिसता हुई आवाज़ के साथ रुक गया।रमेश ने खिड़की से झाँककर कहा,“कौन हो बहन? इतनी रात को यहाँ क्या कर रही हो?”औरत ने सिर उठाया। उसकी आवाज़ बेहद धीमी और ठंडी थी।“भैया… मुझे आगे वाले मोड़ तक छोड़ दीजिए।”
रमेश के शरीर में कप्कपाहट दौड़ गई। इतनी रात को अकेली औरत, वो भी सुनसान सड़क पर, यह सब उसे ठीक नहीं लग रहा था । लेकिन अगर वह मना करता और औरत के साथ कुछ अनहोनी हो जाती, तो उसे भोत बुरा लगता । तो उसने दरवाज़ा खोल दिया ।“ठीक है, बैठ जाओ।”औरत बिना कुछ कहे धीरे-धीरे ट्रक में चढ़ी और सीट पर बैठ गई।ट्रक फिर से चल पड़ा। कुछ देर तक दोनों ने एक दूसरे से कुछ नहीं कहा | तभी रेमश की आँखें शीशे की तरफ गई। उसे देखा कि औरत की परछाई शीशे में नजर नहीं आ रही थी।उसने हिम्मत करके पूछा,
“इतनी रात को कहाँ जाना है?”औरत ने खिड़की से बाहर देखते हुए जवाब दिया,“बस अगले मोड़ तक…”उसकी आवाज़ में ठंडक थी। रमेश का दिल और तेज़ धड़कने लगा।कुछ किलोमीटर चलने के बाद औरत ने अचानक कहा,“भैया, इस मोड़ के बाद जो पुल पड़ेगा, वहाँ ट्रैक मत रोकना।”रमेश चौंक गया।“क्यों? वहाँ क्या है?”औरत ने हल्की सी मुस्कान दी लेकिन कुछ नहीं बोली। उस मुस्कान में कुछ ऐसा था जो रमेश को भीतर से डरा रहा था ।जैसे ही ट्रक पुल के करीब पहुँचा, अचानक इंजन बंद हो गया। ट्रक बीच सड़क पर
रुक गया। रमेश ने बार-बार कोशिश की, लेकिन ट्रैक स्टार्ट नहीं हुई।अचानक ट्रक की खिड़कियाँ अपने आप धड़ाम से बंद हो गईं। रमेश का माथा पसीने से भीग गया।औरत ने धीरे से उसकी तरफ देखा और फुसफुसाई,“यही वो जगह है… जहाँ मुझे मारकर फेंक दिया गया था।”रमेश का खून जम गया।औरत की आँखों से आँसू बहने लगे। लेकिन अगले ही पल उसका चेहरा भिहानक हो गया। आँखें लाल, चेहरा काला और होंठों से खून टपकने लगा।रघु ने चीखने की कोशिश की, लेकिन आवाज़ जैसे गले में अटक गई हो । उसने
रमेश ने दरवाज़ा खोलने की भी कोशिश की, पर सब दरवाज़े लॉक हो चुके थे।सीट पर जहाँ औरत बैठी थी, वहाँ अब खून की बूंदें टपक रही थीं।अब घाटी मैं रात के 3 बज रहे थे। पुल पर अचानक घना धुआँ छा गई।रमेश ने शीशे में देखा – ट्रक के पीछे कई औरतें खड़ी थीं। सब सफेद साड़ी में थीं और उनके चेहरे नहीं थे। वे धीरे-धीरे ट्रक के करीब आ रही थीं।रमेश ने घबराकर हॉर्न बजाने की कोशिश की, लेकिन आवाज़ नहीं निकली। रेडियो अपने आप चालू हो गया और उसमें से बच्चों के हंसने की आवाज़े सुनाई देने लगी।
अचानक ट्रक अपने आप स्टार्ट हो गया। रमेश ने जल्दी से स्टीयरिंग पकड़ा और बिना पीछे देखे वहाँ से निकल पड़ा । ट्रक अब पुल पार ही करने वाला था तभी।उसने शीशे में देखा – वही औरत अब पीछे की सीट पर बैठी मुस्कुरा रही थी। उसकी आँखें अंधेरे में लाल चमक रही थीं।जैसे-जैसे रात गहराती गई, रमेश की हालत बिगड़ती जा रही थी। वह पसीने से तर-बतर हो रहा था और उसकी सांसें भी तेज़ हो चुकी थीं। जितनी बार वह शीशे में देखता, औरत और करीब आती दिखाई देती।सुबह होने में बस कुछ ही घंटे बचे थे। रमेश मन ही मन भगवान को याद कर रहा था।
अचानक औरत ने उसके कान के पास आकर कहा,“अब तुम अकेले कभी नहीं चलोगे। मैं हर रात तुम्हारे साथ सफ़र करूँगी।”रमेश ने चीखते हुए आँखें बंद कर लीं।सुबह छह बजे दूसरे ट्रैक ड्राइवरों ने पुल पर खड़ा रमेश का ट्रक देखा। जिसका इंजन बंद था, दरवाज़े खुले थे।अंदर रमेश बेहोश पड़ा था। रमेश के माथे पर खून से लिखा था –“मैं वापस आऊँगी।”उस दिन के बाद रमेश ने ट्रक चलाना छोड़ दिया। लेकिन गाँववालों का कहना है कि हर रात जब घड़ी दो बजाती है, तो हाईवे पर वही औरत मिलती है और जो भी गाड़ी वह से जाती है वह उससे पुल तक के लिया लिफ्ट माँगती है।
**Conclusion (समापन):**
उस रात के बाद रमेश कभी पहले जैसा नहीं रहा। उसका चेहरा हमेशा सहमा-सहमा रहता, और आंखों में एक ऐसी दहशत थी जिसे कोई समझ नहीं पाता था। उसने ट्रक चलाना छोड़ दिया और गांव के मंदिर में सेवा करने लगा, मानो अपने डर को भगवान के चरणों में समर्पित कर चुका हो।
लेकिन उस पुल की कहानी वहीं खत्म नहीं हुई…
हर साल कई लोग उस सुनसान हाईवे पर गायब होने लगे। जो बच कर लौटे, उन्होंने एक जैसी ही बात बताई — सफेद साड़ी में एक औरत, खुले बाल, और चेहरा ढका हुआ। कुछ ने कहा, उसने उनसे लिफ्ट मांगी, कुछ ने कहा, वह बिना पूछे ट्रक में बैठ गई। और हर बार कहानी वहीं खत्म होती – पुल के पास गाड़ी बंद हो जाना, रेडियो से आती अजीब आवाज़ें, और हवा में गूंजता एक ही वाक्य:
*अब तुम अकेले कभी नहीं चलोगे…”
गांववालों ने कई बार कोशिश की उस आत्मा को शांत करने की। तांत्रिक बुलाए गए, हवन किए गए, लेकिन कोई असर नहीं हुआ। अब वह पुल **”विधवा पुल”** के नाम से जाना जाता है। रात दो बजे के बाद कोई उस रास्ते से गुजरने की हिम्मत नहीं करता।
लोग कहते हैं, जब सड़क पर धुंध छा जाए और रेडियो अपने आप बजने लगे, तो समझ लेना — वो औरत पास ही है।
और अगर तुमने गलती से उसे लिफ्ट दे दी…तो अगली सुबह तुम्हारा ट्रक भी वहीं मिलेगा — दरवाज़ा खुला, इंजन बंद, और अंदर खून से लिखा एक वाक्य: मैं वापस आ चुकी हूँ…”कभी उस रास्ते से गुजरना हो… तो घड़ी जरूर देख लेना।*